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भारतीय सेना के दबे हुए पहलुओं में अय्यारी का तिलिस्म और राष्ट्र सुरक्षा

फिल्म समीक्षा @ MM NEWS TV / धर्मेंद्र उपाध्याय — देश की एक पीढी के सामने अय्यारी शब्द देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित टीवी धारावाहिक चंद्रकांता से आया। इस शब्द को हम हिंदी के अंर्तध्यान से भी आत्मसात कर सकते हैं। ये बात इसलिए याद आई कि आज सिनेमाघर में फिल्म देखने गया तो कुछ नई उम्र के दर्शक फिल्म के शीर्षक को लेकर ही पशोपेश में थे।
इस शुक्रवार को रिलीज हुई लेखक-निर्देशक नीरज पांडे की अय्यारी भारतीय सेना के दबे हुए पहलुओं को दर्शकों के समक्ष रखने का प्रयास करती है। कहानी के मुताबिक कर्नल अभय सिंह (मनोज वाजपेयी) और मेजर जय बखशी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) एक साथ राष्ट्र सुरक्षा की भावना के साथ भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स में कार्यरत हैं। मेजर जय वैसे तो कर्नल अभय को अपना गुरू मानता है, लेकिन फिर भी परिस्थिति वश उनमें नोंक झोंक हो जाती है। इन्ही छुटपुट घटनाक्रमों के साथ जय दिल्ली से कहीं दूर जाने की योजना बनाता है और एक दिन अचानक गायब हो जाता है।
इसे लेकर सेना में उथल पुथल मचती है। कर्नल अभय जय को लेकर बेहद संजीदा हैं। कर्नल अभय लापता मेजर जय की तलाश में लग जाता है, और इन्ही घटनाओं के साथ फिल्म की कहानी दिल्ली से होती हुई कश्मीर और लंदन तक पहुंचती है। यद्यपि फिल्म का क्लाइमेक्स चौंकाने वाला है। लेकिन तब तक फिल्म की अवधि लंबी हो जाने से दर्शकों का ध्यान फिल्म से हट जाता है।
निस्संदेह नीरंज पांडे ने पिछले कुछ सालों में हिंदी सिनेमा को ऐसी फिल्में दी हैं जिनमें श्रेष्ठ विचार हैं, देशप्रेम है और ढेर सारी भावनाएं है। लेकिन कई बार निर्देशक को बड़े निर्माता की ओर से बड़े ऑफर मिलते हैं तो वे इसे ठुकरा नहींं पाते और भावनात्मक आर्थिक दबाब में आकर एक फिल्म बनाकर निर्माता को थमा देते हैं। अय्यारी एसी ही फिल्म है जिसमें घनी भव्यता है पर निर्देशक का दिलोदिमाग नहंीं है।
फिल्म में मेजर जय की भूमिका निभा रहे सिद्धार्थ मल्होत्रा की इमेज दर्शकों में फौजी से पहले प्रेमी की है। एसा लगता है कि पहले ये भूमिका अक्षय कुमार के लिए लिखी गई थी। फिर भी अपनी कद काठी के चलते सिद्धार्थ इसे निभा लेते हैं। लेकिन निर्देशक ने रकु ल प्रीत के साथ उनके प्रेम कहानी के फलैशबैक को गीत संगीत से सजाके खींच दिया है। जिससे दर्शक फिल्म के विषय से भटककर प्रेमी सिद्धार्थ मल्होत्रा अभिनय के मामले में फिल्म मनोज वायपेयी के कांधों पर टिकी है। लेकिन अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह, कुमुद मिश्रा ने भी अपना काम बखूबी निभाया है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बहुत अच्छी है पर फिल्म को संपादन की बेहद जरूरत थी।
पब्लिसिटी सहित फिल्म का बजट 65 करोड़ है। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की शुरूआत थोड़ी ढीली हुई है। इस लिहाज से पहले सप्ताह में फिल्म को अपने दर्शक बढाने होंगे। लेकिन अटकती भटकती रिलीज हुई अय्यारी के लिए एसा कर पाना मुश्किल लगता है। अगर आप वीकेंड में फिल्म देखने जाना चाहते हैं और देशप्रम की भावना आपके दिल में है तो अय्यारी ट्राई कर सकते हैं पर आपको इस फिल्म को देखने का आग्रह नहींं करूंगा।
(पिछले कई सालों से पिंकसिटी जयपुर के पत्रकारिता जगत के साथ रंगमंच और राजस्थानी सिनेमा में सक्रिय रहे युवा पत्रकार धर्मेंद्र उपाध्याय, बतौर फिल्म पत्रकार काम करते हुए कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का लेखन-निर्देशन कर चुके हैं। धर्मेंद्र इन दिनों मुंबई में एक स्क्रीनराइटर के रूप में सक्रिय हैं।)